Wednesday 16 December 2015

मेरी याद आएगी

क़भी जब गिर के सम्भ्लोंगे  तो मेरी याद आएगी ,
कभी जब फिर से बहकोगे  तो मेरी याद आएगी।
वो गलियां , वो बगीचे ,वो शहर ,वो घर ,
कभी गुजरोगे जब उनसे तो मेरी याद आयेगी।
वो कन्धा मीर का तकिया तुम्हारा वस्ल में जो था,
कभी जब नींद में होगे तो मेरी याद  आएगी।
मुझे है याद वो पत्थर कि जिनसे घर बनाया था ,
आँखों ही आँखों से जहाँ सपना सजाया था ,
मुझे है याद वो आँखे, वो बातें और वो सपना,
कभी उस घर से गुजरोगे तो मेरी याद आएगी।
क़भी जब गिर के सम्भ्लोंगे तो मेरी याद आएगी।
कभी जब फिर से बहकोगे तो मेरी याद आएगी।
…atr

ख़ामोशी

चुप रहता हूँ आजकल ,
कम बोलने लगा .
देख लिया दुनिया को मैंने ,
 जान लिया सच्चाई को .
अब दिल बरबस रो पड़ता है,
इस झूठी तन्हाई पर .
इस ख़ामोशी को तुम क्या जानो ,
पाया कितनी मुद्दत बाद .
अब तो सन्नाटे की भी आवाज़ सुनाई देती है ,
कितना सुन्दर आँखों को दुनिया दिखलाई देती है .
चुप हो जाओ , चुप रहने दो , 
कुछ न कहूँगा आज के बाद .
ख़ामोशी कितनी प्यारी है , चादर लेके चुपके चुपके 
मीठी सी गहराई में , सोने की इच्छा है बस 
जी  भर के मुझको सो लेने दो , जाने दो ख़ामोशी से
  …atr

कल्पना

expecting ur reviews and kind attention with ur graceful words ..
जब धरा उठ कर बने आकाश तो अच्छा लगे ,
जब मही की तृप्ति को बादल करे बरसात तो अच्छा लगे.
है अँधेरा, धुंध सा है,राह पथरीली बहुत ,
इस घुटन को चीर कर लूँ साँस तो अच्छा लगे.
मन शांत हो, जिज्ञाशु बुद्धि , और दया संचार हो,
भीड़ से उठकर कोई बोले “शाबास “तो अच्छा लगे .
खोज हो जब सत्य की , और धर्म  का संधान हो ,
शक्ति और क्षमता करें सहवास तो अच्छा लगे .
हो यहाँ प्रज्ञा अकल्पित , प्रेम का संगीत हो ,
धैर्य और साहस पर , हो अटल विश्वास तो अच्छा लगे .
हर कदम पर ,हर शहर में , हर ग़ज़ल हर गीत में ,
हो जहाँ भी मीर तेरी बात तो अच्छा लगे ..
…atr

मृत्यु : परम सत्य

here is some para frm my long work describing the truth “death”.. hope u all ll like ..
वेदो  की  वाणी  भूल  गयी ,ममता  माया  सब  छूट  गयी ..
तैयार  लगा  होने  अब  तो  प्रियतम  के  घर  को  जाने  को
लो  आज  चली  आई  मृत्यु  हमको  निज  गोद  उठाने  को …
संघर्ष किया  था  जीवन  भर  किस  किस  से  लड़ा  किस  किस  को  छला
अब  तो  निज  की  सुध  भी  भूली  कर  सकते  है  क्या  और  भला ‘
जीवन  भर  पथ  में  कांटे  थे  जो  हमने  सबको  बाटे  थे
सब  छल  था  प्रभु  की   माया  थी , है  परम  सत्य  ये  पाने  को
लो  आज …
मैं शांत  पड़ा  निश्छलता  से  पोषित  क्यों  आज  ह्रदय  होता
सुख  देख  कभी  मुस्कान   भरी  ,दुःख  देख  कभी  था  मैं  रोता
अब  हँसना  रोना  भूल  गया  बस अंतिम  याद  है  आने  को
लो  आज ….
जिसको  जीवन  भर  माना  था  जिसको  हमने  पहचाना  था
जिसको  था  कहा  ये  मेरा  है  ,जिस  जिस  को  कहा  बेगाना  था
सब  आज  पराये  ही  लगते  जो  अपना  है  वो  आने  को
लो  आज …
न  द्रोण  युधिष्ठिर  की  भाषा   न  भीष्म  पितामह  का  मंचन ‘
न  अर्जुन  का  वह  शोक  रहा  न  द्वेषित  है  अब  कौरव  गण
सब  शांत  पड़े  निःशांत पड़े ,उस  चाह  में  जो  है  होने  को ‘
लो  आज …
ये  वही  मृत्यु  है  प्राणप्रिये  जिसने  रावण  को  अपनाया
सम्मान  कर्ण  का   किया  प्रिये  जो  वो  न  जीवन  भर  पाया
उस  कंस  दुस्शाशन  के  घर  पे  जो  आई  थी  आलिंगन  को ‘
लो  आज  …
कवि  अपनी  कविता  भूल  गया ,योगी   उच्छ्वास  न  ले  पाया
छूटा  धनु  तीर  धनुर्धर  से ,न  भीम  गदा  लहरा  पाया
प्रेमी  ही  प्रियतम  भूल  गया  ,जब  साँस  रहेगी  जाने  को ‘
लो  आज …
ये  जीवन  सुन  के  शर्म   करो  क्या  तेरा  मेरा  नाता  था
था  साथ  बहुत  तेरा  मेरा  दस  बीस  सैकड़ो  सालों  का
अपना  पाया  न  फिर  भी  तू  ,अब  साथ  तुम्हारा  छूट रहा ,
एक  पल  में  अपना  लेगी  वो  अपने  घर  को  ले  जाने  को
लो  आज …
न  होली  की  है  चाह  मुझे  न  दीपो  की  अभिलाषा  है
या  क्या  होगा  अब  आगे  डर  इसका  भी  मुझे  न  सताता  है
चिंता  भूली  भय  भूल  गया  तैयार  हुई  अपनाने  को
लो  आज …
है  अजेय  ये  कभी  न  हारी  जीत  चुकी  है  दुनिया  सारी
रवि  भी  इसके  आगे  निर्बल  ,धरा  से  भी  बाजी  मारी
संगीत  नृत्य  सब  कला  ग्रन्थ  है  क्रोध  में  ही  जल  जाने  को
लो  आज …
..continued
…atr

ये गीत मेरे

नैनो के सूखे मेघो से मैं आज अगर बरसात करूँ ,
हल करुँ ज़मीन ए दिल में मैं नीर कहाँ से मगर भरूँ?
है सूख चुका अब नेत्र कूप न मन का उहापोह बचा ,
न मेघ रहा न सावन है ,मिट गया जो कुछ था पास बचा .
एक बार हौसला करके मैंने बीज प्रेम के बोये थे ,
न मौसम ने रखवाली की ,सावन ने पात न धोये थे .
अब न मन है , न मौसम है ,न उर्वर क्षमता धरती की ,
न नैनो में अब पानी है ,न दिल में इच्छा खेती की .
रोते है मेघ और कूप सभी ,करता विलाप अब ये मन है ,
फिर भी न आंसू गिरते है ,न नैनो में इतना दम है .
अब बस अंधियारी रातो का यह निपट घना सन्नाटा है ,
दिल रोता है , मैं लिखता हूँ ,जीवन से पल का नाता है .
मैं जाऊँ पर ये गीत मेरे ,फिर किसी जमीन ए बंज़र में ,
मेघ बने ,बरसात करे ,फिर किसी अकालिक मंज़र में …
…atr

Saturday 28 March 2015

वह दौर था .

मोहब्बत  का  वह  दौर  था  ,
दिखता नहीं  कुछ  और  था ..


बस हमारे  प्यार  का  सारे जहां में  शोर  था,
उसने  चुराया  दिल   मेरा ,मन  भी  मेरा  चित  चोर  था ..
आश्ना हम  भी  थे,  आशिकी  उनको  भी  थी ,
अब  जहाँ कुछ  और  है,पहले  यहाँ  कुछ  और  था ..
नाम  होता  था  जुबान  पर  दूसरा  वह  दौर  था, 
एक  ही  आवाज  थी ,हर  शै  में  जो  भर  आई  थी ,
 आज  जो  घुट  सा  रहा  है ,कल  वही  बेजोड़  था ..

   .atr

Saturday 21 March 2015

मुक्तक7

जिंदगी बीत जाती है किसी को चाह कर कैसे? 
कोई  बतलाये  तो मुझको मैं जीना भूल बैठा हूँ...


अदा भी तुम ,कज़ा भी तुम ,मेरे दिल की सदा भी तुम,
तुम्ही  अब चैन हो मेरे ,मेरे दिल की दुआ भी तुम..
तुम्हारे प्यार की उल्फत मेरे दिल की ये तन्हाई,
तुम्हारे प्यार की आहट मुझे जब शाम को आई
सुबह तक सो न पाया मैं, बस यही याद थी दिल में,
कि मैं तूफ़ान में अटका ,नहीं हो तुम भी साहिल में...

...atr

तेरे शहर में..

 आज हम भी है मेहमान तेरे शहर में,
 दिखता नहीं मकान तेरे शहर में.
ग़ुम हो गयी है शाम  की मस्ती  भी अब यहाँ,
ग़ुम  हो गया करार तेरे शहर में..
आते  राहों  में मिल  गया तेरा आशिक,
कहने लगा  न जाओ तेरे शहर में.
जब से तुमने छोड़ा है दस्त ए गुलाब को,
वन हो गया वीरान ,तेरे शहर में.
बन्दों का हाल ऐसा मैं कह न सकता मीर,
पागल हुए जवान   तेरे शहर में.
दिन भर उठी है धूल,पैरों में आ लगी,
मैंने कहा  सलाम है,तेरे शहर में.
हर दिन यहाँ पर तेरी यादो का तमाशा,
बिकता है हर मकान तेरे शहर में.
जो गुल था ,गुलदान था,गुलशन ,ग़ुलाब था,
अब आंधी है ,और तूफ़ान तेरे शहर में..

...atr

छुपा है चाँद बदली में...

छुपा है चाँद बदली में ,अमावस आ गयी है क्या?
नहीं देखा कभी जिसको वही शर्मा गयी है क्या?
मिलन की रात में ये घुप्प अँधेरा क्यों सताता है ?
वो मेरा और उसका छुप छुपाना याद आता है..
अभी तो थी फ़िज़ा महकी , क़यामत आ गयी है क्या?

कभी वो थी कभी मैं था, कभी चंचल चमकती रात,
 न वो कहती ,न मैं कहता मगर आँखे थी करती बात..
जिन आँखों में हया भी थी,कज़ा अब आ गयी है क्या?

वो नदियों के किनारो पर जहाँ जाता था मिलने को,
वो नदियां है क्यों प्यासी सी, बुलाती है बुलाने को,
उन्ही नदियों की रहो में रुकावट आ गयी है क्या?

नहीं देखा कभी जिसको वही शर्मा गयी है क्या?
    ...atr

मुक्तक 6

यहाँ हर शख्स है तेरा, वहां हर कब्र है मेरी,
जहाँ कैसा बनाया है खुद ने क्या इरादा था?

अब तो हालात भी मुझसे मिचौली आँख करते है,
को सपनो में आता है ,किसी को याद करते है.

मुझे है डर कहीं फिर से किसी हूरों की महफ़िल में,
उड़ाया फिर से न जाये ,ये कुचला जिगर मेरा..

...atr

Friday 20 March 2015

मुक्तक5

तेरी चाहत में इतना  मैं पराया हो गया खुद  से ,
कि दिल मेरा है फिर भी बात  करता है सदा तेरी..

कभी वो चांदनी मेरी थी, अब पावस की है यह रात,
नहीं दिल में मेरे अब वो, नहीं हाथो में उसका हाथ..

न वो मेरी न मैं उसका तो फिर ये बीच का क्या है,
नहीं देखूंगा अब उसको जो चेहरा चाँद जैसा है...

...atr

मुक्तक 4

आज फिर लगा दिल से अभी भी आग उठती है,
 कभी वो याद आ जाये कहानी जाग उठती है…

चन्दन मेरा वजूद है लिपटे हुए हैं सांप ,

 बेबस की ये दवा है क्या मीर किया जाये .
   ...atr

बस प्यार चाहिए..

हथियार न बन्दूक न तलवार चाहिए ,

इंसान से इंसान का बस प्यार चाहिए.

है बंद गुलिस्ता ये मुद्दतो से मीर,
इस में फकत गुल ओ बहार चाहिए.
नेकी की राह बड़ी बेरहम है ना,
नेकी के मुसाफिर को तलबगार चाहिए.
न भीड़ हो अन्धो की,गूंगो की,और बहरों की यहाँ,
जो हो शरीफ उनका मुश्कबार चाहिए.

ये इश्क की सजा है या तुनीर का कहर ,
ये तीर इस जिगर के आर पार चाहिए.
ग़मगीन जो समां हो मेरा नाम लेना मीर ,
चेहरे पे ख़ुशी और दिल में प्यार चाहिए.

...atr

मंज़िलें नज़दीक है…

सफर शुरू हुआ है मगर मंज़िलें नज़दीक है…
ज़िंदगी जब जंगलोके बीच से गुजरे,
कही किसी शेर की आहट सुनाई दे,
जब रात हो घुप्प ,चाँद छिप पड़े,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िलें नज़दीक है..
जब सावन की बदली तुम्हारी ज़िंदगी ढक ले,
पड़ने लगे बूंदे रात में हौले हौले,
हो मूसलाधार जब बरस पड़े ओले,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िले नज़दीक है..

.
हो घना कुहरा के आँखे देख न पाये,
जब पड़े पाला ,रात में स्वान चिल्लाएं,
अचानक तीव्र तीखी जब हवा चलने लगे,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िले नज़दीक हैं..
जब कड़कती धूप में चेतनता जाने लगे,
आश्मान से जब दिवाकर आग बरसाने लगे,
फ़ट पड़े धरती अचानक जब प्रलय के काल से,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िले नज़दीक हैं..
यदि मुसाफिर इन दशाओं में तेरी शक्ति रहे,
तू सदा जगता रहे,चलता रहे,
आप पर विश्वास लेकर शंख की उन्नाद से,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िले नज़दीक हैं..

   ...atr

एक प्रश्न


आँखों से झरते आंसू ने थमकर पूछा,
 आखिर सजा क्यों मिली मुझे ख़ुदकुशी की?
 दिल रो पड़ा पुराना जखम फिर हरा हुआ,
कहा, गुनाह उसी ने किया जिस छत से तू गिरा ..
     ..atr

मैं आइना हूँ……


न मैं उसके जैसा हूँ ,न मैं तेरे जैसा हूँ ,
जो देखेगा मुझे जैसा ,यहाँ मैं उसके जैसा हूँ..
न मेरी जाति है कोई ,न मज़हब से है मेरा नाम,
न मंदिर की मुझे चिंता ,न मस्जिद से मुझे है काम.
मैंने देखा है उसे प्यार की रंगीन मुद्रा में,
मगर मैं फिर भी कहता हूँ , न कहता हूँ मैं गैरों से..
मैंने प्यार की अटखेलियां दोनों की देखीं है,
मगर अब चाह बस मेरी यही इतनी सी बाक़ी है,
मैं चाहता हूँ कि मैं बस प्यार देखूं ,न क्रोध ,न भय ,न चिंता,
क्यूंकि मैं मैं नहीं,मैं तुम हूँ,मैं वो हूँ ,मैं ये हूँ,
मैं सबकुछ नहीं …….मैं आइना हूँ…
  ...atr

मुक्तक 3

खड़ी है जिंदगी फिर पूछती घर का पता क्या है,
मुझे याद नहीं है मीर तू ही जाकर बता क्या है..
बड़ी मुश्किल है बेचारी किधर जाये ख़बर क्या है?
कभी वो पूछती है फिर इधर क्या है? उधर क्या है?
  ...atr

यूँ ही कुछ..

गुलजार करने आया था वो बागबान मानिंद ,
गुलशन उजाड़ कर फिर वो मीर चल दिया..

हम तो हर्फ़ के सीने पे हर्फ़ लिखते चलते है,
ऊँचे हिमालय पर जमी हिम सी पिघलते है.
हम फूल या कंदील है जो भी समझ लो तुम,
हम दुश्मनो के दिल से भी मिल के निकलते है..

हम गंग बन जाये धरा की प्यास बुझती है,
हम संग हो जाएँ जहाँ हर शाख झुकती है.
हम ने ही दिलों में प्रेम का हर गीत छेड़ा है,
हम ही ठहर जाये,जहाँ वहां हर शाख झुकती है..
      ..atr

मुक्तक2

हो गयी मुद्दत  तुम्हारे सामने आया ही नहीं ,
है मगर सच ये कभी तुमने बुलाया ही नहीं.
अब तो सांसो पर मेरे पहरा तुम्हारा ही रहे,
है राज़ कि बातें,तेरे बिन एक पल बिताया भी नहीं.
  ...atr

मुक्तक 1

मोहब्बत के सवालों से मैं अक्सर अब मुकर जाता ,
कहीं बातो ही बातों में मैं कुछ कहकर ठहर जाता..
कि तेरा नाम भूले से जबां तक आ गया ग़र तो,
तू बदनाम हो जाये न इससे मैं सिहर जाता ...
    ...atr

तुम्हारे लिए..

अगर तुम बन गयी दीपक तुम्हारी लौ बनूँगा मैं,
नदी के शोर में शायद तुम्हारी धुन सुनूंगा मैं.
तुम्हारी याद में अक्सर यहाँ आंसू  टपक पड़ते,
ये मोती है मेरे प्रीतम मगर कब तक गिनूंगा मैं...
  ..art

तुम्हे पाने की खातिर.

वो मंज़र याद है तुमको ,जुदा हम तुम हुए थे जब,
समंदर याद है तुमको जहाँ पत्थर चलाया था..
कभी जब याद आ जाये ,ज़रा हमको भी करना याद ,
किसी के साथ जो तुमने वहां कुछ पल बिताया था.
नहीं दिल से अभी वो शाम जाती है , नहीं होता सवेरा,
की जब से तुम गए हो मीर, मेरा जीवन अँधेरा.
ख़ुदा कैसी तमन्ना है,की मैं अब भी तरसता हूँ,
पता मुझको , यकीं मुझको, मगर फिर भी मचलता हूँ...
   तुम्हे पाने की खातिर,तुम्हे पाने की खातिर..
    ...atr

शुभ नवरात्रि ...

आप सभी मित्रो को हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ... शुभ नवरात्रि ..
माँ  शैलपुत्री आप सब की सभी मनोकामनाएं पूरी करे .. आप के जीवन में उल्लास और
सफलता की कामना...
    ...atr

मेरी हार ...

मोहब्बत में हारे, क़यामत  में हारे
की ये ज़िंदगी हम शराफत में हारे..
न कोई है अपना ,न कोई पराया,
अब जियें किसलिए  और किसके सहारे..
न है यामिनी आज जीवन में मेरे ,
मिटे, मिट गए आज हम फिर किनारे..
कभी  लए  से सांसे जो चलती  थी  मेरी ,
मगर अब खड़े आज बेबस बेचारे..
मिला भी नहीं कुछ ,बचा  भी नहीं कुछ,
जो था पास में सब तुम्हारे  पे हारे...
मोहब्बत में हारे ,क़यामत  में हारे,
की ये जिंदगी  हम शराफत में हारे...

    ...atr

Thursday 19 March 2015

आज फिर कोई रो रहा है…
फिर कहीं किसी किसी गली से आवाज़ आ रही है,
आज फिर कोई रो रहा है….
फिर कहीं कोई कसक नैनों में आ गयी,
फिर वादो की टूटी माला कोई पिरो रहा है,
आज फिर कोई रो रहा है..
आँखों से उमङा सागर दीदार प्रिया का पाकर ,
फिर कोई प्रणयनी का आँचल भिगो रहा है,
आज फिर कोई रो रहा है…..
प्रीति की लपट से फिर झुलस गया कोई ,
फिर तीर से हो लथपथ दिल को संजो रहा है ,
आज फिर कोई रो रहा है……

फिर आज कोई बैठा समंदर पिरो रहा है..


…atr

घर याद आया .

फिर मुझको मेरा घर याद आया .
अकेला था मेरा मन जब ,
न था कोई भी जब साया .
फिर मुझको …..
मैं खाने जब भी जाता हूँ ,
तो माँ की याद आती है ,
अकेले सोचता हूँ जब,
मुझे पल पल रुलाती है .
कभी दुविधा में जब मैं था,
तो ईश्वर याद न आया .
कभी तबियत बिगड़ने पर ,
मैं माँ का नाम चिल्लाया .
फिर मुझको मेरा घर याद आया ……
…atr

आरज़ू...



दबी जबान में चलो आज बात हो जाये , आँखों ही आँखों में अब मुलाकात हो जाये जज्बातों में अब आबरू बची भी रहे , चलो फिर आज दिल से दिल की बात हो जाये ….
     …atr



मेरी आदत....

मुझे अब भी हवाओं में तुम्हे सुनने की आदत है ,
 मुझे अब भी निशाओं में तुम्हे चुनने की आदत है ..
 मैं अब भी फ़िज़ाओं में तुम्हे महसूस करता हूँ , 
मुझे अब भी घटाओं में तुम्हे बुनने की आदत है ….. 
    …atr

मुझको पिलाओ यारो…..

आज फिर जी भर के मुझको पिलाओ यारो,
मैं तो झूमा हूँ, मुझे और झुमाओ यारो..
आज इतनी पिलाओ कि फिर होश न रहे,
अब तो साकी से मुझे और दिलाओ यारो..
रात आधी है बंद है मयकदा,
मेरे जीने के लिए इसको खुलाओ यारो..
पी पी के मरने में वक़्त लगेगा मुझे;
आज ही बंद करके मय न जलाओ यारो.
फिर कभी याद में उसकी न धुआं दिल से उठे ,
इसलिए दिल में लगी आग बुझाओ यारो…
आज फिर जी भर के मुझको पिलाओ यारो..

…atr

आज फिर याद में….

आज फिर याद में उनके आँशू बहे ,
वो सलामत रहे ,हम रहें न रहें .
अब तो दिन रात रहती है आँखे सज़ल ,
अब तो कटती है राते यूँ सुनकर ग़ज़ल .
है यही आरज़ू ये ग़ज़ल का सफर ,
यूँ ही चलता रहे, दिन गुजरता रहे.
आज फिर याद में उनके आँशू बहे ….
दर्द के गीत में प्यासे संगीत में,
तुमको गाते रहे , गुनगुनाते रहे
आज फिर याद में उनके आँशू बहे…
मैं कहीं भी गया तुम मेरे साथ थे,
जब अकेला था , तुम याद आते रहे..
आज फिर याद में……

         ….atr

सलाखें ग़ज़ल गाती हैं...

अब तो उनके घर से सदायें आती हैं ,
जो कभी मेरे न थे उनकी भी दुआएं आती हैं …
 सुना है उन मकानों में हज़ारो कत्लखाने हैं ,
 जहाँ दिल चूर होते हैं , सलाखें ग़ज़ल गाती हैं…
   …atr

जीवन की पुस्तक....



मेरे जीवन की पुस्तक को है पढ़ पाना बड़ा मुश्किल ,
 कि इसमें दुःख है पीड़ा है सुख पाना बड़ा मुश्किल .
ये पुस्तक आज भी यूँ मीर स्वर्णिम ही रही होती ,
 तुझे पाना बड़ा मुश्किल तुझे खोना बड़ा मुश्किल…
       …atr

|| गुमनाम पत्र ||

|| गुमनाम पत्र || (स्नातक के समय लिखा हुआ अपूर्ण , परित्यक्त ग्रामीण अंचल पर आधारित उपन्यास का एक अंश ) -अभिषेक त्रिपाठी माघ महीने के दो...