Friday 23 September 2016

वासंती हवा

मेरे दिल में है उदासी
आ भी जाओ तुम हवा सी .

भोर के किरणों के जैसी ,ओस को मोती बनाने.
रात को सोये हुए फूलों में फिर से खुश्बू लाने.
तुम मलय के घर से निकलो , हर सुबह बन जाये काशी.
मेरे दिल में है उदासी
आ भी जाओ तुम हवा सी 

बाग़ के पत्ते गिरे सब , जा चुका है कब का पतझड़ .
फिर भी अब तक नवल किसलय न ही फूलों की है झांकी .

रात का सोया पथिक अब भोर में अलसा रहा है ,
क्षुब्ध होके फिर प्रकृति से आज सोने जा रहा है .
कोयलों की कूक को क्यों अब सुनाने में समय है ,
सोने वाले उस कवि को गीत गाने में समय है .
आज पनघट पे खड़ी फिर गोपिकाएं क्यों है प्यासी |
मेरे दिल में है उदासी
आ भी जाओ तुम हवा सी |

आज कवि की लेखनी  कुछ यूँ चलाई जा रही है ,
फिर विचारों में समय की स्याही लगाई जा रही है,
फिर नया मधुमास आया , लेके नव विश्वास आया ,
आ गए हैं फिर से पत्ते , फूल भी लहरा रहे हैं ,
फिर मधुर वासंती स्वर में गीत गाये जा रहे हैं ,
मेरे मन में प्रेरणा है , दीप्ति हैं अब ज़रा सी ,

आ गयी जो तुम हवा सी , मिट गयी सारी उदासी .

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