Saturday 1 April 2017

तुम्हारे हिज़्र में

दो दिन की मुलाकात थी, आधी अधूरी बात थी,
वो छोड़ के चला गया , जिंदगी उदास थी|
एक रात मैं सोया हुआ, ख्वाब में वो आ गया ,
सोये हुए दर्द को फिर से जगा गया |

पर  मीर वक़्त का क्या कहिये, हर चीज़ को चकमा देती है,
हर शख्स ग़ुलामी करता है, हर चोट को फिर भर देती है|

था मेरा हाल बुरा उस दिन , जिस दिन वो छोड़ के भागा था,
पर अब देखो मैं हँसता हूँ , पहले मैं बड़ा अभागा था|
 ज़िन्दगी की यही कहानी है, यह  दुनिया ही दीवानी है,
कोई न किसी का दोस्त यहां , हर रिश्ता पर रूमानी है|
हर वस्ल  में खुश्बू होती है , हर हिज़्र में आंसू  बहते है|
न कोई हकीकतगोई है , सपनों का , ख्वाबों का धोखा|

उस ख्वाबों में जीने का अपना ही एक एहसास है,
पहले वो जितना पास था , अब भी वो उतना पास है|

...atr

No comments:

Post a Comment

|| गुमनाम पत्र ||

|| गुमनाम पत्र || (स्नातक के समय लिखा हुआ अपूर्ण , परित्यक्त ग्रामीण अंचल पर आधारित उपन्यास का एक अंश ) -अभिषेक त्रिपाठी माघ महीने के दो...