Sunday 18 December 2016

प्रेम का नवगीत

दिल हमारा गा रहा है प्रेम का नवगीत फिर से ,
आँख से झर झर निकलते अश्रु  का संगीत फिर से.

ज्यों  की पंकज  फूलने  से पूर्व  खुद को धो रहा हो ,
या कि किसलय गर्भ के पश्चात जी भर रो रहा हो.
वेदना  के चरम पर आनंद का नवगीत फिर से,
आँख से झर झर निकलते अश्रु  का संगीत फिर से.

ज्येष्ठ की तपती दुपहरी में की ज्यों बरसात होगी ,
या की सावन के अमावस में चमकती  रात होगी ,
गुनगुनायेंगे सितारे, चांदनी गायेगी मेरे गीत फिर से ,
आँख से झर झर निकलते अश्रु  का संगीत फिर से.
दिल हमारा गा रहा है प्रेम का नवगीत फिर से|
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