Thursday 13 October 2016

उजाले की ओर

हे प्रणय रस प्रेम  के कवि, हे मधुर संगीत के स्वर ,
इस अँधेरे गुप्त स्वर से मैं अमर संसार लिख दूँ|
दो मुझे ऐसी कलम , मैं शत्रु की तलवार लिख दूँ|

नेह लिख दूँ द्वेष के ऊपर विजय अपरिहार्य  लिख दूँ ,
दो मुझे ऐसी कलम , मैं शत्रु की तलवार लिख दूँ|

वीरता का शस्त्र थामे , कायरों की भीड़ पर मैं ,
इस अशासित द्वन्द पर , लेख से प्रहार लिख दूँ|
दो मुझे ऐसी कलम , मैं शत्रु की तलवार लिख दूँ|

जब घृणा हो विकट युग में , दिल निचोड़े जा रहे हों ,
खींचकर सब विष ह्रदय से , प्रेम का व्यापर लिख दूँ|
दो मुझे ऐसी कलम , मैं शत्रु की तलवार लिख दूँ|

सब थके हों आलसी हो, भोर की न हो खबर जब ,
खींच के एड़ी धरा पर फिर से मैं रफ़्तार लिख दूँ|
दो मुझे ऐसी कलम , मैं शत्रु की तलवार लिख दूँ|

भय, निराशा , क्रोध से बीमार जब लगने लगे,
वीरता , उम्मीद , चुम्बन का अटल उपचार लिख दूँ|
दो मुझे ऐसी कलम , मैं शत्रु की तलवार लिख दूँ|

हे प्रणय रस प्रेम  के कवि, हे मधुर संगीत के स्वर ,
इस अँधेरे गुप्त स्वर से मैं अमर संसार लिख दूँ|
दो मुझे ऐसी कलम , मैं शत्रु की तलवार लिख दूँ|

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