क़भी जब गिर के सम्भ्लोंगे तो मेरी याद आएगी ,
कभी जब फिर से बहकोगे तो मेरी याद आएगी।
वो गलियां , वो बगीचे ,वो शहर ,वो घर ,
कभी गुजरोगे जब उनसे तो मेरी याद आयेगी।
वो कन्धा मीर का तकिया तुम्हारा वस्ल में जो था,
कभी जब नींद में होगे तो मेरी याद आएगी।
मुझे है याद वो पत्थर कि जिनसे घर बनाया था ,
आँखों ही आँखों से जहाँ सपना सजाया था ,
मुझे है याद वो आँखे, वो बातें और वो सपना,
कभी उस घर से गुजरोगे तो मेरी याद आएगी।
क़भी जब गिर के सम्भ्लोंगे तो मेरी याद आएगी।
कभी जब फिर से बहकोगे तो मेरी याद आएगी।
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