अपरिपक्व विचारों के साथ सुबह जगा हुआ सूर्य दिन भर के संघर्षों, खुशियों, दुखों और विमर्शों को देखकर एवं सुनकर जब शाम को प्राप्त हो जाता है तो उसके विचार परिपक्व हो गए रहते हैं | ऐसी ही सांझ के विचार और विचारों की सांझ को अपने साथ लेकर प्रस्तुत हूँ मैं आपका अपना, अभिषेक | आइये आपको भी विचारों की इसी गंगा में ले चलें जो हृदयों की काशी में बह रही है |
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|| गुमनाम पत्र ||
|| गुमनाम पत्र || (स्नातक के समय लिखा हुआ अपूर्ण , परित्यक्त ग्रामीण अंचल पर आधारित उपन्यास का एक अंश ) -अभिषेक त्रिपाठी माघ महीने के दो...
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वर्षों से ये विचार कर रहा था कि बनारस में रहकर सबसे ज्यादा किसी से कुछ मिला तो क्या मिला! जवाब तो आज भी स्पष्ट नहीं है पर ये जरूर लगता है ...
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गुलजार करने आया था वो बागबान मानिंद , गुलशन उजाड़ कर फिर वो मीर चल दिया.. हम तो हर्फ़ के सीने पे हर्फ़ लिखते चलते है, ऊँचे हिमालय पर जमी ह...
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||अगस्त की सुबह और तुम || (काल्पनिक, किसी जीवन से सम्बन्ध एक सयोंग ) अगस्त की सुबह। जगा तो 10 बज रहे थे। होस्टल के कमरे की खिड़की से झांक...
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बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं तुझे ए ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं। फ़िराक़ गोरखपुरी की ये ग़ज़ल ज़िंदगी और महबूबा के विष...
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काफी शोर शराबे के बीच कुछ दिनों पहले यादृच्छया मैं लालकिले का इतिहास पढ़ रहा था | जिस लालकिले ने शाहजहां के शाही आगमन से लेकर बहादुर शाह ...
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