Monday 20 February 2017

मुक्तक

सफेदी ओढ़ कर यूँ चाँद तंग मुझको न कर तू ,
कफ़न जिस दिन भी ओढूंगा , ज़माना सारा रोयेगा.
...atr

तेरा घर

मुझे कुछ भी कहीं पर याद आये तो तेरा घर हो,
ग़र कहीं पर जान जाये तो तेरा घर हो.
नियति मासूक से मिलने का मौका भी नहीं  देगी,
ग़र कहीं दीदार हो जाये  तेरा घर हो.
बदन पर सिलवटें दिखने लगी है  उम्र बाक़ी है,
कहीं ग़र रूह भी मुरझाना चाहे तो तेरा घर हो.
विदाई के समय रोये थे हम दोनों गले मिल कर ,
वो आंसू  आँख से गिर जाना चाहें तो तेरा घर हो.
मुकद्दर ने लिया है  छीन मुझसे दोस्ती का सुख,
कभी जब दुश्मनी आज़माना चाहे तो तेरा घर हो.
मुझे कुछ भी कहीं पर याद आये तो तेरा घर हो.
...atr

|| गुमनाम पत्र ||

|| गुमनाम पत्र || (स्नातक के समय लिखा हुआ अपूर्ण , परित्यक्त ग्रामीण अंचल पर आधारित उपन्यास का एक अंश ) -अभिषेक त्रिपाठी माघ महीने के दो...