Friday 20 March 2015

मुक्तक 4

आज फिर लगा दिल से अभी भी आग उठती है,
 कभी वो याद आ जाये कहानी जाग उठती है…

चन्दन मेरा वजूद है लिपटे हुए हैं सांप ,

 बेबस की ये दवा है क्या मीर किया जाये .
   ...atr

No comments:

Post a Comment

|| गुमनाम पत्र ||

|| गुमनाम पत्र || (स्नातक के समय लिखा हुआ अपूर्ण , परित्यक्त ग्रामीण अंचल पर आधारित उपन्यास का एक अंश ) -अभिषेक त्रिपाठी माघ महीने के दो...