अपरिपक्व विचारों के साथ सुबह जगा हुआ सूर्य दिन भर के संघर्षों, खुशियों, दुखों और विमर्शों को देखकर एवं सुनकर जब शाम को प्राप्त हो जाता है तो उसके विचार परिपक्व हो गए रहते हैं | ऐसी ही सांझ के विचार और विचारों की सांझ को अपने साथ लेकर प्रस्तुत हूँ मैं आपका अपना, अभिषेक | आइये आपको भी विचारों की इसी गंगा में ले चलें जो हृदयों की काशी में बह रही है |
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|| गुमनाम पत्र ||
|| गुमनाम पत्र || (स्नातक के समय लिखा हुआ अपूर्ण , परित्यक्त ग्रामीण अंचल पर आधारित उपन्यास का एक अंश ) -अभिषेक त्रिपाठी माघ महीने के दो...
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||अगस्त की सुबह और तुम || (काल्पनिक, किसी जीवन से सम्बन्ध एक सयोंग ) अगस्त की सुबह। जगा तो 10 बज रहे थे। होस्टल के कमरे की खिड़की से झांक...
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दो दिन की मुलाकात थी, आधी अधूरी बात थी, वो छोड़ के चला गया , जिंदगी उदास थी| एक रात मैं सोया हुआ, ख्वाब में वो आ गया , सोये हुए दर्द को फिर ...
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बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं तुझे ए ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं। फ़िराक़ गोरखपुरी की ये ग़ज़ल ज़िंदगी और महबूबा के विष...
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हे प्रणय रस प्रेम के कवि, हे मधुर संगीत के स्वर , इस अँधेरे गुप्त स्वर से मैं अमर संसार लिख दूँ| दो मुझे ऐसी कलम , मैं शत्रु की तलवार लिख ...
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मैं प्रेम ढूंढता रहा कठोर सी जुबान में , पत्थरों के शोर में और दुश्मनो के गावँ में| जहाँ न कोई प्रीति है न है ख्याल भाव का , न भावना की ...
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