Wednesday 7 February 2018

वर्ग और समाज

आज Department  में सीढ़ियों से उतरते हुए एक सज्जन को देखा जो सीढ़ियां चढ़ रहे थे, हाथ में कुछ काग़ज़ थे और लम्बे शरीर पर कोट था | उनको देखकर मैं रुक गया और उनको रास्ता दे  दिया जिससे की वो बिना किसी बाधा  के आगे जा सकें | मैं उसके बाद 1-2 सीढ़ियां ही उतरा रहा होऊंगा की सामने से माली दिखा जो ऊपर के ऑफिस में जाने के लिए सीढिया चढ़ रहा था | उसे देखकर मन में आया अरे इसको देखो मैं नीचे उतर रहा हूँ और ये चढ़ता चला आ रहा है | और फिर बिना रुके मैं सीधा उतरता चला आया |

ये तो बस  एक दृष्टान्त भर है| और इन सब का मतलब बस ये बताना है की वर्ग आधारित समाज की अवधारणा कितने गहरे तक हमारे दिमाग में आ चुकी है | कई पीढ़ियां लग जाएँ कोई बात नहीं लेकिन ये प्रक्रिया कि एक माली किसी कोट वाले से कम दर्जे का नहीं है , सतत चलती रहनी चाहिए और एक ऐसा वर्गमुक्त समाज बने जहाँ कोट और माली दोनों को बराबर देखा जाये, बराबर समझा जाये और किसी क्लास के आधार पर  किसी से भेदभाव न हो | कार्य अलग हो , कर्त्तव्य अलग हो लेकिन वर्ग के आधार पर न बांटा जाये |

सभी के जीवन का बराबर मूल्य है ,(यहां मूल्य का तात्पर्य मुद्रा नहीं है ) अगर आप एक कोट वाले के लिए रास्ता छोड़ रहे हैं तो एक माली के लिए भी छोड़ें |

Abhishek Tripathi

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